कौशी समाकल प्रमेय

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गणित में, ऑगस्टिन लुइस कौशी के नाम से नामकरण किया गया सम्मिश्र विश्लेषण कौशी समाकल प्रमेय (इसे कौशी-गूर्सा प्रमेय के नाम से भी जानते हैं) (साँचा:Lang-en), सम्मिश्र समतल में होलोमार्फिक फलन के लिए रेखा समाकल के बारे में एक महत्वपूर्ण कथन है। वस्तुतः, इस कथन के अनुसार यदि दो अलग-अलग पथ दो बिन्दुओं को जोड़ते हैं और जो इन दोनों पथों के मध्य सर्वत्र होलोमार्फिक फलन है, तब इस फलन के दोनों पथ समाकल समान होगें।

यह प्रमेय प्रायः निम्नानुसार विवृत पथों के लिए सूत्रबद्ध है: माना U, C का एक विवृत समुच्चय है जो एकशः सम्बद्ध है, माना f : UC एक होलोमार्फिक फलन और माना γ, U में एक चापकलनीय पथ है जिसका प्रारम्भ बिन्दु और अंत्य बिंदु समान हैं। तब

γf(z)dz=0.


परिचर्चा

जैसा गूर्सा ने प्रदर्शित किया कि में कौशी समाकल प्रमेय को केवल यह मानकर सिद्ध किया जा सकता है कि U में f '(z) का सम्मिश्र अवकल सर्वत्र विद्यमान है। यह सार्थक है क्योंकि इन फलनों से कौशी समाकल सूत्र सिद्ध किया जा सकता है और इससे परिणाम निकलता है कि ये फलन वास्तव में अनंततः अवकलनीय है।

यह शर्त कि U एकशः सम्बद्ध है का मतलब यह है कि U में कोई विवर नहीं नहीं है अथवा समस्थेयता व्यंजक में, U का मूलभूत समूह trivial है; प्रत्येक विवृत चकती U={z:|zz0|<r} इसका एक उदाहरण है। यह महत्वपूर्ण है; माना

γ(t)=eitt[0,2π]

जो एक इकाई वृत को निर्दिष्ट करता है और तब पथ समाकल

γ1zdz=02πieiteitdt=02πidt=2πi

शून्यतर है; कौशी समाकल प्रमेय यहाँ तक लागू नहीं है चूँकि z=0 पर f(z)=1/z परिभाषित नहीं है (और निश्चित ही होलोमार्फिक नहीं है)।

इस प्रमेय का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह है कि एकशः सम्बद्ध प्रांत पर होलोमार्फिक फलन के पथ समाकलन की गणना वास्तविक कलन के मूलभूत प्रमेय से की जा सकती है : माना U, सम्मिश्र संख्याओं के समुच्चय C का एक एकशः सम्बद्ध विवृत उपसमुच्चय है, माना f : UC एक होलोमार्फिक फलन है और माना γ, U में खंडशः अवकलनीय पथ है जिसका आरम्भ बिन्दु a है और अंत्य बिन्दु b है। यदि F, f का सम्मिश्र प्रतिअवकलनीय है तो

γf(z)dz=F(b)F(a).

कौशी समाकलन प्रमेय उपर प्रदर्शित उदाहरण से थोड़ी प्रबल वैध होगी। माना U, C का एकशः सम्बद्ध विवृत उपसमुच्चय है और f एक फलन है जो U पर होलोमार्फिक है और U पर सतत है। माना γ, U में एक वलय है जो सीमित लम्बाई के साथ U में चापकलनीय वलय के γk की समरूप सीमा का परिणाम है और निम्न सीमा का पालन करता है

γf(z)dz=0.

उदाहरण के लिए अधिक जानकारी के लिए साँचा:Harv देखें।

कौशी समाकलन प्रमेय कौशी समाकलन सूत्र और अवशेष प्रमेय का परिणाम है।

प्रमाण

यदि माना कि होलोमार्फिक फलन का आंशिक अवकलन सतत है, कौशी समाकलन प्रमेय ग्रीन प्रमेय का सीधा परिणाम सिद्ध किया जा सकता है और f=u+iv के वास्तविक व काल्पनिक भाग का प्रभाव यह है कि इसे γ से परिबद्ध क्षेत्र में कौशी-रीमान समीकरण सन्तुष्ट होनी चाहिये और इसके अतिरिक्त U के विवृत प्रतिवेश के क्षेत्र में भी। कौशी ने इसे सिद्ध भी किया लेकिन यह बाद में गूर्सा ने सदिश कलन अथवा आंशिक अवकलन की सांत्यतता पद्धति रहित उपलब्द्ध करवाया।

हम समाकल्य f को और ऐसे ही अवकलज dz को इनके वास्तविक व काल्पनिक घटकों में विच्छेद किया जा सकता है :

f=u+iv
dz=dx+idy

इस अवस्था में हमें निम्न प्राप्त होता है

γf(z)dz=γ(u+iv)(dx+idy)=γ(udxvdy)+iγ(vdx+udy)

ग्रीन प्रमेय के अनुसार, वास्तविक व काल्पनिक भागों की तुलना करने पर

γ(udxvdy)=D(vxuy)dxdy
γ(vdx+udy)=D(uxvy)dxdy

तथापि क्षेत्र D के वास्तविक और काल्पनिक भाग विश्लेषी फलन होंगे, अतः u और v के लिए भी कौशी-रीमान समीकरण संतुष्ट होनी चाहिए :

ux=vy
uy=vx

अतः हमें प्राप्त होता है कि इनके समाकल (और इनके समाकलन भी) शून्य हैं।

D(vxuy)dxdy=D(uyuy)dxdy=0
D(uxvy)dxdy=D(uxux)dxdy=0

जिससे प्राप्त होता है

γf(z)dz=0

ये भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:कौशी नामकरण