अभिकेन्द्रीय बल

testwiki से
imported>Bagda king द्वारा परिवर्तित १७:१८, १० दिसम्बर २०२४ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर गति करती है तो उस पर केंद्र की और एक बल कार्य करता है, इस बल को अभिकेंद्रीय बल कहते हैं। इस बल के अभाव में वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर नहीं चल सकती है। यदि कोई m द्रव्यमान का पिंड v से r त्रिज्या के वृत्तीय मार्ग पर चल रहा है तो उस पर कार्यकारी वृत्त के केंद्र की ओर आवश्यक अभिकेंद्रीय बल f=mv2/r होता है।

किसी पिण्ड के तात्क्षणिक वेग के लम्बवत दिशा में गतिपथ के केन्द्र की ओर लगने वाला बल अभिकेन्द्रीय बल (Centripetal force) कहलाता है। अभिकेन्द्र बल के कारण पिण्ड वक्र-पथ पर गति करती है (न कि रैखिक पथ पर)। उदाहरण के लिये वृत्तीय गति का कारण अभिकेन्द्रीय बल ही है।

𝐚=v2r(𝐫r)=v2r𝐮^r=ω2𝐫

जहाँ:

𝐚 अभिकेंद्रीय त्वरन है,
v वेग का परिमाण (magnitude) है,
r पथ की वक्रता त्रिज्या है,
𝐫 स्थिति सदिश है,
𝐮r त्रिज्य सदिश है,
ω कोणीय वेग है।

न्यूटन के गति के द्वितीय नियम के अनुसार यदि कहीं कोई त्वरण है तो त्वरण की दिशा में बल अवश्य लग रहा होगा। अतः यदि m द्रव्यमान का कण एकसमान वृत्तीय गति कर रहा हो तो उस पर लगने वाले अभिकेन्द्रीय बल का मान निम्नलिखित सूत्र द्वारा दिया जायेगा:

𝐅=mv2r𝐮^r=mω2𝐫 इलेक्टोन नाभिक के चारों ओर अभिके्न्दीय बल के कारण चक्कर लगाते है !

साँचा:आधार