कृष्णिका विकिरण

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जो वस्तु अपने ऊपर आपतित सभी तरंग लम्बाइयों के विकिरण को पूर्णतः अवशोषित कर लेती है,आदर्श कृष्णिका कहलाती है आदर्श कृष्णिका उच्च ताप तक गर्म करने पर सभी सम्भव तरंगदैध्यौ॔ के विकिरण का उत्सर्जन करती है उत्सर्जित विकिरण की

तरंग-दैर्घ्य  परास कृष्णिका के पदार्थ पर निर्भर  नहीं करती है,केवल कृष्णिका के ताप पर निर्भर  करती है
जैसे-जैसे ताप कम होता जाता है, कृष्णिका विकिरण वक्र का शिखर कम तीव्रता एवं अधिक तरंगदैर्घ्य की तरफ चलता जाता है।

यदि कोई वस्तु अपने पर्यावरण के साथ उष्मागतिक साम्य में हो तो उस वस्तु के अन्दर या उसके आसपास से निकलने वाले विद्युतचुम्बकीय विकिरण को कृष्णिका विकिरण (Black-body radiation) कहते हैं। किसी नियत एवं एकसमान ताप वाली कृष्णिका द्वारा उत्सर्जित विद्युतचुम्बकीय विकिरण 'कृष्णिका विकिरण' कहलाता है। कृष्णिका विकिरण का एक विशिष्ट स्पेक्ट्रम तथा तीव्रता होती है जो केवल उस वस्तु के तापमान पर निर्भर होता है।[]

ऐसा आदर्श पिंड जो हर प्रकार के आवृत्ति के विकिरणों को एक समान उत्सर्जित तथा अवशोषित करता है, कृष्णिका ( black body) कहा जाता है तथा इस पिंड से उत्सर्जित विकिरण को कृष्णिका विकिरण कहते हैं।

वास्तव में ऐसा कोई  पिण्ड नहीं होता जो पूर्णतः कृष्णिका जैसा व्यवहार करे। किन्तु कार्बन ब्लैक कृष्णिका के बहुत समान होता है। इसके अलावा सूक्ष्म छिद्रयुक्त कोई गुहा भी कृष्णिका का एक अच्छा भौतिक सन्नीकटन होती है। इसमें एक छिद्र के अलावा अन्य कोई द्वार नहीं होता। गुहा में प्रवेश करने वाली कोई भी किरण गुहा की भीतरी दीवारों से परावर्तित होती रहती है और अन्त में गुहा की दीवार द्वारा अवशोषित हो जाती है। कृष्णिका, विकिरणी ऊर्जा की आदर्श रेडिएटर भी होती है; इससे अतिरिक्त कृष्णिका अपने परिवेश के साथ तापीय साम्य में होती है। यह दिए गए समय में प्रति ईकाई क्षेत्रफल में इतनी उर्जा विसरित करती है जितनी उसने परिवेश से  अवशोषित की थी।

कृष्णिका से उत्सर्जित प्रकाश की मात्रा तथा उसका स्पेक्ट्रम में वितरण केवल उसके ताप पर निर्भर करता है। दिए गए तापमान पर, उत्सर्जित विकिरण की तीव्रता तरंग-दैर्घ्य के बढ़ने के साथ बढ़ती है। किसी एक तरंग-दैर्घ्य पर यह अधिकतम होती है, उसके बाद तरंग दैर्घ्य के और बढ़ाने पर वह घटनी शुरू होती है, एवं जैसे-जैसे ताप बढ़ता है वक्र का मैक्सिमा लघु तरंग-दैर्घ्य की ओर स्थानांतरित हो जाता है।

प्लांक का नियम

I(ν,T)=2hν3c21ehνkT1.

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

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