फुरिअर विश्लेषण

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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में किसी फलन (फंक्शन) को छोटे-छोटे सरल फलनों के योग के रूप में व्यक्त करने को विश्लेषण कहा जाता है एवं इसकी उल्टी प्रक्रिया को संश्लेषण कहते हैं।

हमें ज्ञात है कि फुरिअर श्रेणी के प्रयोग से किसी भी आवर्ती फलन को उचित आयाम, आवृत्ति एवं कला की साइन तरंगो (sine waves) के योग के रूप मे व्यक्त करना सम्भव है। इसके सामान्यीकरण के रूप में यह भी कह सकते हैं किं किसी भी समय के साथ परिवर्तनशील संकेत को उचित आयाम, आवृत्ति एवं कला की साइन तरंगो (sine waves) के योग के रूप में व्यक्त करना सम्भव है। फुरिअर विश्लेषण (Fourier analysis) वह तकनीक है जिसका प्रयोग करके बताया जा सकता है कि कोई संकेत (सिग्नल) किन साइन तरंगों से मिलकर बना हुआ है। फलनों (या अन्य वस्तुओं) को सरल टुकड़ों में तोडकर समझने का प्रयास फुरिअर विश्लेषण का सार है।

आजकल फुरिअर विश्लेषण का विस्तार होकर यह एक अधिक सामान्य हार्मोनिक विश्लेषण के अंग के रूप में जाना जाने लगा है।

उपयोग

फुरिअर विश्लेषण से अन्य बातों के अलावा यह पता चलता है कि कोई संकेत किन-किन आवृति के साइन तरंगों से मिलकर बना है अर्थात किन आवृत्ति के साइन तरंगों का आयाम अधिक है किनका कम है और किनका बिलकुल ही नहीं या नगण्य है। कोई संकेत मुख्यतः किन आवृत्तियों से मिलकर बना है - यह ज्ञान बहुत उपयोगी होता है। उदाहरण के लिये किसी घूर्णन करने वाली मशीन में कोई अवांछित कम्पन (वाइव्रेशन) हो रहा है तो फुरिअर विश्लेषण का उपयोग करके उस कम्पन की आवृत्ति पता की जा सकती है; फिर देखते हैं कि इस आवृत्ति पर कौन सी घटना घट रही है और इस प्रकार उस अवांछित कम्पन के स्रोत (कारण) का पता लगाया जा सकता है। इसी तरह किसी इंजन में टर्बुलेंट प्रवाह की आवृति का विश्लेषण करके उस इंजन की डिजाइन में सुधार किया जा सकता है। मानव वाक (स्पीच) के आवृत्ति-विश्लेषण के द्वारा सुनने में सहायक उपकरणों की डिजाइन में मदद मिलती है। इसी तरह इसके अनेकानेक उपयोग हैं।

फुरिअर विश्लेष्ण का भौतिकी, आंशिक अवकल समीकरण (पार्शिअल डिफरेंशिअल एक्वेशन्स), संख्या सिद्धान्त, क्रमचय/संचय, संकेत प्रसंस्करण, इमेगिंग, प्रायिकता सिद्धान्त, सांख्यिकी, क्रिप्टोग्राफी, आंकिक विश्लेषण (न्युमेरिकल एनालिसिस), ध्वनि विज्ञान, प्रकाशिकी, समुद्रशास्त्र (ओसीनोग्रफी), ज्यामिति आदि अनेक क्षेत्रों में प्रयोग होता है।

इसके अतिरिक्त फुरिअर ट्रान्सफार्म की सहायता से किसी संकेत को संक्षिप्त रूप में व्यक्त करने में मदद मिलती है। उदाहरणार्थ जेपेग (JPEG) कम्प्रेशन करने के लिये किसी छवि (इमेज) के छोटे-छोटे वर्गाकार भागों के फुरिअर ट्रान्सफार्म का प्रयोग किया जाता है और इसमें से कम आयाम वाले क्षीण अवयवों को पूरी तरह निकाल दिया जाता है। छवि को पुनः निमित करने के लिये इसकी उल्टी प्रक्रिया अपनायी जाती है।

फुरिअर विश्लेषण के अन्तर्गत आने वाली प्रमुख संक्रियाएँ

फुरिअर विश्लेषण की कौन सी संक्रिया कब प्रयोग की जायेगी, यह उस फलन (आंकड़ा) की प्रकृति पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिये यदि फलन N डिस्क्रीट डाटा का सेक्वेंस है (और यह माना जा रहा है कि ये आंकड़े आवर्ती हैं, (x(k)=(x(k+N)) तो वहाँ डीएफटी का प्रयोग लाभकर होगा।

फलन का स्वरूप संगत रुपान्तरण सूत्र आवृत्ति से समय डोमेन में रूपान्तर
(x0,,xN1)N डिस्क्रीट फुरिअर रुपान्तर (डीएफटी) x^k=n=0N1xnei2πknN xn=1Nk=0N1x^kei2πknN
(xn)n डिस्क्रीट टाइम फुरिअर ट्रान्सफार्म (DTFT) x^(ω)=12πn=xneiωn xn=12πππx^(ω)eiωndω
x:[π,π] फुरिअर श्रेणी x^k=12πππx(t)eiktdt x(t)=12πk=x^keikt
x: फुरिअर रुपान्तर (फुरिअर ट्रान्स्फार्म) x^(ω)=12πx(t)eiωtdt x(t)=12πx^(ω)eiωtdω

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ