काल्पनिक संख्या

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र्ती)

i3=i
i2=1
i1=i
i0=1
i1=i
i2=1
i3=i
i4=1
i5=i
i6=1
in=in(mod4)
(मॉड्युलर देखें)

एक काल्पनिक संख्या एक संख्या है जिसे वास्तविक संख्या को काल्पनिक इकाई i गुणा के रूप में लिखा जाता है, जो इसके गुण्धर्म i2=1 द्वारा परिभाषित किया है।[] एक काल्पनिक संख्या का वर्ग शून्य अथवा ऋणात्मक होता है। उदाहरण के लिए 5i एक काल्पनिक संख्या है जिसका वर्ग 25 है।

काल्पनिक संख्या bi को एक वास्तविक संख्या a में जोड़ने पर सम्मिश्र संख्या a+bi प्राप्त होती है, जहाँ a और b सम्मिश्र संख्या के क्रमशः वास्तविक भाग और काल्पनिक भाग हैं। अतः काल्पनिक संख्या उस सम्मिश्र संख्या को भी कहा जा सकता है जिसका वास्तविक भाग शून्य है।

इतिहास

सम्मिश्र तल का एक उदाहरण। काल्पनिक संख्याएं उर्ध्व निर्देशांक अक्ष पर रखी जाती है।

यद्दपि यूनानी गणितज्ञ और अभियंता अलेक्जेंड्रिया के हीरो ने सर्वप्रथम यह संख्या प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की,[][]। काल्पनिक संख्याओं को व्यापक रूप से स्वीकृति ऑयलर (1707–1783) और गॉस (1777–1855) के कार्य के मिली। सम्मिश्र संख्याओं की समतल के बिन्दुओं द्वारा ज्यामितिय सार्थकता सर्वप्रथम कैस्पर वेस्सेल (1745–1818) वर्णित की।[]

ज्यामितिय विवेचन

सम्मिश्र तल में 90-डिग्री घूर्णन

ज्यामितीय रूप से, काल्पनिक संख्याएं सम्मिश्र तल की उर्ध्व अक्ष पर रखी जाती हैं।

काल्पनिक संख्याओं के अनुप्रयोग

काल्पनिक संख्याओं का महत्व सम्मिश्र संख्याओं से अवास्तविक संख्याओं के निर्माण से आरम्भ होता है जो वैज्ञानिक और सम्बंधित क्षेत्र जैसे संकेत प्रसंस्करण, नियंत्रण सिद्धान्त, विद्युतचुम्बकत्व, तरल गतिकी, प्रमात्रा यान्त्रिकी, मानचित्रकला और स्पंदन विश्लेषण के लिए आवश्यक सामग्री है।

गुणा और वर्ग मूल

ऋणात्मक संख्याओं के वर्गमूलों का गुणलफल को ध्यानपूर्वक करना चाहिए। उदाहरण के लिए[] निम्न विधि गलत है:

i2=11=(1)(1)=1=1

तर्कदोष यह है कि गणित में xy=xy, लिखा जाता है जहाँ वर्ग मूल का मुख्य मान दृष्टांत तब होता है जब x और y दोनों संख्याओं में से कम से कम एक संख्या धनात्मक है, यहाँ यह स्थिति नहीं है।

ये भी देखें

सन्दर्भ

साँचा:टिप्पणीसूची

ग्रंथ सूची

बाहरी कड़ियाँ

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