सूर्य में सुरंग प्रभाव

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एक अन्य संदर्भ जिसमें सुरंग प्रभाव उभर के आता है, वह है दो अल्प द्रव्यमान के नाभिकों का संलयन| इस घटना का प्रौद्योगिक दृष्टि से नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में विशेष महत्व है| तारों का आंतरिक तापमान कुछ 107 K के करीब होता है| उदाहरण के लिए, सूर्य का भीतरी तापमान 2x107 K है| इस अत्यधिक मान का कारण गुरुत्वाकर्षण संकुचन है|[]

जब तापमान इतने ऊँचे स्तर पर पहुँच जाता है, तब विभिन्न नाभिक, उच्च दाब की आयनीकृत गैस (प्लाज़्मा) में रहते हुए अपना अस्तित्व खो देते हैं, तथा उनके भीतर उपस्थित प्रोटॉन्स स्वतंत्र हो जाते हैं| इस तापमान पर एक प्रोटॉन की गतिज ऊर्जा ( काइनेटिक एनर्जी) का मान 3/2 KT यानि 1.9 keV के बराबर होता है| इसी दौरान इन प्रोटॉन्स का संलयन होता है जो कि इस प्रकार है-

                               p+ + p+  2H + e+ + ν[]
R वह दूरी है जहाँ प्रोटॉन की स्थतिज और गतिज ऊर्जा समान हो जाती हैं| इससे कम दूरी होने पर गतिज ऊर्जा का मान स्थतिज ऊर्जा से कम होता जाता है और तब प्रोटॉन के स्थानांतरण की संभावना से दी जाती है|
प्रोटॉन सुरंग प्रभाव दर्शाते हुए|वह दूरी है जहाँ प्रोटॉन की स्थतिज और गतिज ऊर्जा समान हो जाती हैं| इससे कम दूरी होने पर गतिज ऊर्जा का मान स्थतिज ऊर्जा से कम होता जाता है और तब प्रोटॉन के स्थानांतरण की संभावना T=e2(R0Rγdx)से दी जाती है|

पर इस प्रक्रिया में एक बाधा आती है जो है दो प्रोटॉन्स का आपसी विद्दुत विकर्षण| अतः यह प्रक्रिया तभी संभव है जब निम्नलिखित दो घटनाओं का संयोग हो: कूलम्ब रुकावट को सुरंग बनाकर पार करना, तथा आयनीकृत प्रोटॉन्स के तापमान को बढ़ाना, जिससे कि उनकी गतिज ऊर्जा में बढ़ौतरी हो| इससे प्रोटॉन स्थितिज ऊर्जा (पोटेंशियल एनर्जी) की रुकावट के ऊँचे और संकीर्ण भाग में पहुँच सकेगा (चित्र देखें), जहाँ उसके लिए सुरंग बनाकर दूसरी ओर पहुँचने की संभावना बढ़ जाये|[]

मान लेते हैं कि दो प्रोटॉन्स एक दूसरे की ओर अग्रसर हैं, जो कि उनका संलयन होने के लिए सबसे अनुकूल परिस्थिति है| उनकी कुल गतिज ऊर्जा E= (1.9+1.9) keV = 3.8 keV 4 keV है, जबकि उनकी स्थितिज ऊर्जा U= e24πϵ0= 400 keV निकल करके आती है, जब r  का मान R0=3.6 fm हो| यह वह दूरी है जिसमें नाभिकीय आकर्षण क्रियाशील हो जाता है जो कि विद्दुत विकर्षण से कई गुणा अधिक बलशाली होता है| यदि उन प्रोटॉन्स के बीच की दूरी किसी भी प्रकार से यहाँ तक पहुँच जाये तो फिर उनके संलयन का कार्य बिना किसी बाधा के संपूर्ण हो जाता है| यह महत्वपूर्ण कार्य सुरंग प्रभाव के फलस्वरूप ही संभव हो पाता है|[] अंततः दो प्रोटॉन्स का मेल स्थापित होता है तथा हमें उसके अनुक्रम में होने वाली अन्य प्रक्रियाओं के अंतिम चरण में वह He नाभिक (अल्फा कण) मिलता है जिसके साथ निकलने वाली ऊर्जा तारों को उनके जन्म से (सूर्य के लिए 5x109 वर्ष) निरंतर जलते रहने के लिए मिलती आ रही है|